Sunday, July 31, 2022

 

राज्यों को आय कर लगाने का अधिकार मिलना चाहिए 
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भा ज पा की मोदी सरकार के एक निर्णय ने भारत मे टैक्स लगाने के मामले मे राज्य शक्तियों के विकेन्द्रीकरण को तकनीकी रूप से संभव कर दिया है।

यह निर्णय है आय कर जमा करने के लिए करदाता की PAN संख्या को अनिवार्य रूप से आधार संख्या से जोड़ने का।
चूंकि केवल एक प्रतिशत हिन्दुस्तानी आय कर चुकाते हैं इसलिए कृपया इस पोस्ट को "आधार के कारण निजता के हनन" वाली बहस की नजर से न पढें ।
संघीय राज्य व्यवस्था (Federal State structure) भारत सहित कई देशों मे लागू है. अच्छी संघीय प्रणाली मे हरेक व्यक्ति की संघीय नागरिकता के साथ  ही किसी एक राज्य की नागरिकता (जिसे "Province of Domicile" भी कहते हैं) भी निश्चित होती है।
अमेरिका (USA) मे केंद्र सरकार अपना आय कर वसूलती है और हरेक राज्य भी अपने नागरिकों से आय कर लेता है। उन करों से केंद्र सरकार अपना खर्च चलाती है तथा राज्य सरकारें अपने आय कर से अपना खर्च निकालती है। विभिन्न राज्यों मे आय कर की काफी अलग दरें होती है। कराधान की यह विविधता राज्यों के कार्यों मे निर्णायक प्रभाव डालती है - जैसे स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था, आधारभूत संरचना, पुलिस व्यवस्था, कल्याणकारी खर्च वगैरह के स्तर।  साथ ही किसी राज्य मे "राज्य आय कर की कम या ज्यादा दरें" देश के नागरिकों को किसी खास राज्य मे बसने के लिए तथा उद्यम लगाने के लिए प्रेरित या निरुत्साहित करती है।  

यह व्यवस्था राजनीतिक तथा आर्थिक विकेन्द्रीकरण का एक मजबूत खंभा है। अच्छे लोकतन्त्र के लिए राज्य शक्तियों का विकेन्द्रीकरण एक अनिवार्य जरूरत है।
चूंकि आधार संख्या प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित रूप से पहचानती है इसलिए वह आय कर देने वाला व्यक्ति निर्विवाद अपना राज्य (Domicile)  चुन सकता है। साथ ही वह दो या ज्यादा राज्यों को अपना राज्य नहीं बना सकता है ।  

इसलिए "आय  कर की PAN संख्या को अनिवार्य रूप से आधार संख्या से जोड़ने का निर्णय" अब राज्यों को
एक तकनीकी औजार देता है कि वे निर्विवाद रूप से अपना आय कर लगा सकते हैं । जाहिर है कि केंद्र सरकार की आय कर दरें वाजिब मात्रा मे घटा दी जाएंगी।
राज्यों की राजनीतिक इच्छा शक्ति और विकेन्द्रीकरण की व्यापक मांग ऐसे विकेन्द्रीकरण की शुरुआती कदम होगी। तकनीकी संभवता तो मात्र एक औजार है ।  
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इस नोट पर प्रो अनिल सदगोपाल की एक प्रतिक्रिया आई है ।  उस संदर्भ मे मैंने नीचे स्पष्टीकरण लिखा है। ---
तिथि- 29 जुलाई '22  
आदरणीय प्रो अनिल सदगोपाल, 
मुझे बड़ी खुशी रही है कि आप मेरे नोटों  को पढ़ते हैं और अपने विचार मुझे लिखते हैं। उनसे मेरे विचार और ज्ञान संवर्धित होते हैं और
मेरा उत्साह बढ़ता है । 
पिछले नोट को मैंने भारत मे विकेन्द्रीकरण बढ़ाने की संभावना के संदर्भ मे लिखा है। 
मेरा निश्चित मत है कि भारत मे अच्छे शासन और हरेक इलाके के विकास के लिए राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक विकेन्द्रीकरण, 
एक अनिवार्य जरूरत है। इसके लिए प्रत्येक नागरिक (खास कर धनी और उद्यमी वर्ग) को राज्य (प्रदेश) प्रदत्त सुविधाओं और कर देने के कर्तव्यों 
के  प्रवर्तन (Enforcement)   हेतु उसका राज्यवार अधिवास (Domicile) तय करना जरूरी है। 
अब तक उन्हे हरेक राज्य के संसाधन लेने की छूट है पर किसी खास राज्य के प्रति कोई कर्तव्य निर्धारित नहीं है। राज्यवार अधिवास 
(Domicile) तय होने पर ये कमियाँ दूर हो जाएंगी। इन उच्च वर्ग के लोगों की आधार संख्या किसी एक राज्य मे संयोजित (Linking)  करने से यह 
उद्देश्य पूरा हो सकता है। जाहिर है कि वह नागरिक किसी दूसरे राज्य मे अधिवास का दावा नहीं कर सकेगा। 
राज्य-व्यक्ति के इस निर्विवाद  संयोजन के बाद वह नागरिक अपने एकमात्र प्रदेश को आयकर देने को बाध्य होगा। प्रदेश सरकारें अपने 
प्रदेश के संसाधन आवंटित करने तथा अन्य प्रोत्साहन / सहायता देने मे वहाँ के अधिवासी (Domiciled) लोगों को प्राथमिकता देगी क्योंकि 
उनसे आयकर सीधे ही राज्य को मिलता रहेगा। 
यह स्वतंत्र आर्थिक स्रोत प्रदेश स्तर के लोकतान्त्रिक शासन को मजबूती देगा। अब तक सभी करों पर (काफी कुछ GST सहित) केंद्र सरकार
का एकाधिकार है। इस नई संभावना से विकेन्द्रीकरण के आंदोलनकारियों का मनोबल और मजबूत होगा। 
भारत के संविधान मे  संघीय प्रणाली को माना तो गया पर केंद्र सरकार को बहुत ज्यादा शक्तियां मिली। शुरू के 67 वर्षों की केंद्र सरकारों 
ने भी विकेन्द्रीकरण को नहीं बढ़ाया, बल्कि उसे संकुचित करने के कई प्रयास भी हुए। 
2014 से भाजपा की सरकार तो केन्द्रीकृत शासन को बढ़ाने मे जी तोड़ लगी है। वह अब तानाशाही के स्तर पर जा चुका है। विकेन्द्रीकरण 
बढ़ाने के आंदोलन मे भाजपा के तीव्र विरोध का मुकाबला करना होगा।  
सादर और सुकामनाओं  संग 

-चन्द्र भूषण 

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