मोदी सरकार के आज के इस निर्णय का सभी लोग विश्लेषण करें; जिसमे
हुर्रियत नेताओं और पाक उच्चायुक्त की बातचीत से नाराज भारत सरकार ने पाकिस्तान से बातचीत रद्द कर दी है। 25 अगस्त को इस्लामाबाद में दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच वार्ता होनी थी. रिश्तों को पटरी पर लाने के लिए होने वाली इस बातचीत के रद्द होने से दोनों देशों के बीच रिश्तों के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा?
मुझे लगता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भा ज पा का तर्क हीन मुस्लिम द्वेषी दिमाग भारत की विदेश नीति को बरबाद कर के ही रहेगा. और उस पर तड़का लगा हुआ है नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व जो अंदर से बहुत कमजोर है। अपने भद्दे और भड़काऊ चुनाव भाषणो से मोदी ने अपने रा स्वं सं जैसे दिमाग वाली बड़ी भीड़ को मुस्लिम विरोध के लिए उत्तेजित दिया है. वार्ता को रद्द करने का फैसला शायद दो वजह से लिया गया है – 1 . विपक्षी पार्टियों द्वारा पाक सीमा पर हो रही फ़ौजी झड़पों पर मोदी का उपहास 2 . कमजोर मोदी की यह मानसिक जरूरत कि उसे मुस्लिम विद्वेषी भीड़ की नज़र में बहादुर दीखना चाहिए।
वार्ता रद्द करने के लिए यदि कोई और खुफिया सूचना सरकार के पास होती तो हुर्रियत नेता के पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मिलने पहले ही इस्लामाबाद बैठक रद्द करने की घोषणा सरकार कर चुकी होती.
हुर्रियत जैसे किसी एक निस्तेज और छिन्न भिन्न हो चुके अलगाव वादी संगठन नेता का पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मिलना ऐसी बड़ी शरारत नहीं है जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच पूरी कूटनीतिक प्रक्रिया तोड़ दी जाय। कूटनीतिक प्रक्रिया को तोड़ने से दोनों देशो बीच ढेरों संभावित प्रगति – आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, व्यापार, क्षेत्रीय (सार्क), खेल कूद सहयोग, सिविल सोसायटी के आदान प्रदान, ये सभी इससे रुक जाते हैं. आम ज्ञान है कि लड़ाई और कूटनीति दोनों साथ चलते रहते हैं।
सभी देशों के राजदूत तो मेज़बान देश के बिभिन्न नागरिकों से मिलते ही रहते हैं. पाकिस्तान में ज्यादा लोकतांत्रिक व्यवस्था के पैरोकार किसी संगठन के नेता से क्या इस्लामाबाद स्थित भारतीय राजदूत को नहीं मिलना चाहिए ? क्या पाकिस्तानी सरकार ऐसी किसी मुलाक़ात से क्या कूटनीतिक प्रक्रिया को तोड़ देगी?
इस सरकार, भा ज पा, और वर्त्तमान में देश का सबसे बड़ा संकट यह है कि आगे सरकार के सारे निर्णय केवल एक व्यक्ति नरेंद्र मोदी के दिमाग से लिए जाएंगे. अभी भा ज पा के सारे छोटे- बड़े नेता और मन्त्री इतने दास और ग़ुलाम दिमाग के हैं कि मोदी स्वयं सारे महत्वपूर्ण निर्णय लेगा। वह कोई बड़ा काम किसी दूसरे नेता , मन्त्री या अफसरों के जिम्मे छोड़ेगा ही नहीं। किसी से निर्णायक सलाह भी नहीं लेगा. कोई मंत्री, पूरा काबीना या अफसर में निर्णय करने का अधिकार माँगने की हिम्मत भी नहीं है. इंदिरा गांधी की कार्य शैली को याद करें।
जिन थैली शाहों, उद्योग पतियों की ग़ुलामी वह कर रहा है वे देश चलाने के राजनीतिक और नीतिगत मामलों में गलत ही सलाह देंगे.
इस नए नैपोलियन का वाटरलू वही होगा। लेकिन तब तक देश बरबाद हो चुका होगा.
आप सब 5 साल पूरा होने के बहुत पहले ही इस सरकार को हटाने की कोशिश में जी जान से लग जाएं। पहला कदम है अगले विधान सभा चुनावों में भा जा पा को सत्ता से बाहर रखने लिए अन्य सभी दलों के बीच राजनीतिक समझौते और बिहार जैसा महा गठबंधन.
आप सब 5 साल पूरा होने के बहुत पहले ही इस सरकार को हटाने की कोशिश में जी जान से लग जाएं। पहला कदम है अगले विधान सभा चुनावों में भा जा पा को सत्ता से बाहर रखने लिए अन्य सभी दलों के बीच राजनीतिक समझौते और बिहार जैसा महा गठबंधन.
-चन्द्र भूषण चौधरी